कुछ दिन पहले तथाकथित दिल वालों की दिल्ली शहर में एक Indian Art and Craft exhibition
में भाग लेने आया था | गुप्तकाशी से नईदिल्ली की २० घंटो की बेवक्त,थकावट भरी और
खतरनाक रोमांचकारी बस यात्रा ने मेरे अंदर के डर को और भी निडर कर दिया हैं|
गुप्तकाशी और आस-पास के इलाके में हों रही लगातार मूसलाधार बारिश ने पहाड़ की सड़कों
की गुणवता का जमकर परीक्षा लिया, नतीज़न जगह-जगह सड़कें अपनी गुणवता का फटेहाल प्रदर्शन
कर रही थीं और उसका खामियाजा हमारे जैसे आम आदमी अपना समय और सुरक्षा गवां कर भर
रहें थें|Disaster Management के बारे में सुन-सुन कर पक चूका हूँ, लेकिन यथार्थ
में इसका कहीं भी सही क्रियान्वयन नहीं देख पाया हूँ | चाहे वो उत्तर बिहार का बाढ़
हों या बुंदेलखंड का अकाल ये सब आपदाओं में हर बार एक ही मुद्दा उठता/उठाया जाता
हैं और वो मुद्दा होता हैं की इन प्राकृतिक आपदाओं में कितने लोग मारे गये और उस
इलाके में राहत के लिए सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं ने क्या और कितना काम किया? दुनिया
में प्राकृतिक आपदाओं से जितनी मौत होती हैं उसका ८०% मौत सिर्फ Asia Pacific में होती हैं; Asia Pacific में भी प्राकृतिक आपदाओं से जितनी
मौत होती हैं उसका लगभग ६०%-७०% सिर्फ भारतीय महाद्वीप में होती हैं | Disaster
Management अर्थात आपदा प्रबंधन कोई नया चीज या चमत्कार नहीं हैं, हम भारतीय
सदियों पहले से इसका कुशल प्रबंधन करते आ रहें हैं, पिछले कुछ शतको से इस क्षेत्र
में हमारा कुशल प्रबंधन लगातार रसातल में जा रहा हैं, मुश्किलें बढती हीं जा रही
हैं, आजकल इसको अंग्रेजी नाम देके इस तरह से प्रायोजित किया जा रहा हैं जैसे की ये
कोई नया अवतार/अन्वेषण हों गया हों |Organic Agriculture अर्थात जैविक
खेती के साथ भी यहीं विडंबना जुडा हुआ हैं, इसको भी इसी तरह से पूरा मसाला लगा कर
इसका स्वाद बदल कर पेश किया जा रहा हैं और जब आमिर खान जैसे लोग इसके बारे में बोल
दे तब तो ..............कुछ दिन पहले जैविक खेती के बारे में जागरूकता कार्यक्रम
में मैं उत्तराखंड के कार्यक्षेत्र में था , कार्यक्रम समाप्त होने के बाद मैं एक अधेड
उम्र की महिला से इस कार्यक्रम के फायदे और जैविक खेती के बारे मैं बातचीत कर रहा
था, बातचीत के दौरान उस महिला ने बताया “सर जी हम लोग तो हमेशा से यहीं और इसी तरह
से खेती किया करते हैं , यहाँ तक की हम लोग गाय और बैल भी इसीलिए पालते हैं ताकि उनसे
गोबर मिल सके, आपलोग बस हमारे पारंपरिक खेती को ही नए अंग्रेजी नाम दे कर ले आये
हैं और हमे बता रहें हैं , कम्पोस्ट का उपयोग करें, रासायनिक खाद का प्रयोग न करे
“|आजकल हमारे देश मैं भी बहुत सारे foreign डिग्री धारी आ रहें हैं और ग्रामीण क्षेत्रों
में विकास कैसे करे, इसका पाठ हमें पढ़ा रहें हैं, ये भी एक गजब विडंबना हैं
की जिन्होंने खुद कभी गाँव देखा ही नहीं
वो अब गाँव वालों के लिए policy बना रहें हैं , खैर छोडिये वापस अपने विषय पर चलते
हैं |
Disaster
Management और Organic Agriculture के बारे मैं जागरूकता और प्रचार बहुत जरुरी हैं लेकिन इसको नए तरीके और नए
नाम से प्रायोजित करने का कोई जरुरत नहीं हैं, हम धीरे-धीरे पुनः “Green economy (Green economy फिर से हमारी पुरानी व्यवस्था का नया UN,US वाला अंग्रेजी
वाला Brand name हैं, जिसका सीधा-सादा मतलब हैं, ऐसे व्यवस्था विकसित करना जिसमे
हम प्रकृति की तरह हर product ya sub product का उपयोग कर सके अर्थात no wastage”
मेरे समझ से Disaster
Management अर्थात आपदा प्रबंधन आपदायों का पूर्वानुमान हैं और इस पूर्वानुमान के
आधार पर जान-माल के क्षति को कम से कम करने की कार्यविधि का समुचित क्रियान्वयन
हैं |लेकिन हम भारतीयों की मानसिकता की “किसी भी सामान को तब तक चलाते जब तक की वो
चूं न बोल दे , एकबार चूं तो बोले उसके बाद देखा जायेगा” ही इसके राह में सबसे बड़ा
रोड़ा हैं, हद तो तब हों जाती हैं जब हमारी ये मानसिकता अपने खुद के शरीर के साथ भी
यहीं व्यवहार करती हैं |उत्तराखंड में हर साल बरसात के मौसम में भूस्खलन होता हैं,
हर बार सड़के टूटती हैं, हर बार लोग मरते हैं, सरकार ने भूस्खलन का क्षेत्र भी
पहचान करके रखा हैं , भूस्खलन के बाद मलवा हटाने का भी बुरा ही सही पर व्यवस्था
हैं परन्तु.... भूस्खलन को होने से पहले ही रोकने का कोई इंतजाम नहीं हैं |मान लिया
जाये ये काफी महंगा प्रोजेक्ट हों सकता हैं किन्तु अगर आपने एक बार ये काम कर लिया
तो आपका सालों का समय बच जायेगा , जो पैसे आप दस सालों में आपदा के बाद खर्चा
करेंगे आप एक बार उसको आपदा के पहले ही उसको रोकने के लिए खर्चा कर दे |उत्तराखंड
की सीमा चीन से जुडी हुए हैं , सीमा सुरक्षा के लिए तैनात जवानों के लिए खाद्य और
आयुध सामग्री इसी वन-वे महामार्ग (मैं गुप्त-काशी के आस-पास के इलाके की बात कर
रहा हूँ) से हों कर जाती हैं | खुदा न खास्ते कल अगर चीन ने भारत पर आक्रमण कर
दिया तो हम लोग अपने ही देश में मलवा हटाते रह जायेंगे और विदेशी अंदर तक बिल्कुल
आराम से आ जायेंगे | उत्तराखंड में बांध बनना चाहिए या नहीं इस मुद्दे पर दोनों
पक्षों का जगह-जगह पर आंदोलन और मारपीट चल रहा हैं; केंद्र सरकार, राज्य सरकार,
मंत्री, संत्री, साधू-सन्यासी सब भाषणबाज़ी मैं लगे हैं |विकास और पर्यावरण के नाम
पर हर कोई अपने ego और
वर्चस्व की लड़ाई लड़ रहा हैं |क्या स्थानीय सरकार, राज्य सरकार, केंद्र सरकार और आम
आदमी इन मुद्दे पर गंभीरता से सोच कर कुछ
दूरदर्शिता और समझदारी भरा कदम उठा सकते हैं?