चलो आज फिर,
एक बार क्रिकेट खेल आते हैं
|
दोपहर की तपिश में,
खुद को सचिन बनाते हैं |
डेल्हा की तंग गलियों में,
जोर-जोर से चिल्लाते हैं |
प्लास्टिक की गेंद से,
गलियों को गनगनाते हैं |
इसी बहाने गन्दी नालियों को,
थोडा साफ कर जाते हैं |
ईट का विकेट लगा,
गली में थोडा जाम लगाते हैं
|
बार-बार गेंद मांग,
पड़ोसियों को जगाते हैं |
मम्मी के डाट- फटकार को
अनसुना कर जाते हैं |
जिंदगी के इस खूबसूरत पन्ने
को,
एक बार फिर से पलट कर आते
हैं |
चलो आज फिर,
एक बार क्रिकेट खेल आते हैं |
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