Thursday, January 26, 2012

चाहत

एक समां जलाना चाहता हूँ ,

लोगों को जगाना चाहता हूँ ,

आसमां के ऊपर अपना घर बनाना चाहता हूँ |

हर दर्द को अपनाना चाहता हूँ ,

खुशियों को लुटाना चाहता हूँ ,

हर घर में ज्ञान की ज्योति जलाना चाहता हूँ ,

अपने माँ के दर्द को भुलाना चाहता हूँ ,

हर गाँव तक अस्पताल पहुँचाना चाहता हूँ,

प्रान्तीय भेद-भाव को मिटाना चाहता हूँ  ,

एक सशक्त भारत बनाना चाहता हूँ !!

I wrote this poem during our training days of ICICI Fellowship at Khandala in August 2011 . This was my first serious attempt to write poetry  and from here my poetry life starts .......

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