एक समां जलाना चाहता हूँ ,
लोगों को जगाना चाहता हूँ ,
आसमां के ऊपर अपना घर बनाना चाहता हूँ |
हर दर्द को अपनाना चाहता हूँ ,
खुशियों को लुटाना चाहता हूँ ,
हर घर में ज्ञान की ज्योति जलाना चाहता हूँ ,
अपने माँ के दर्द को भुलाना चाहता हूँ ,
हर गाँव तक अस्पताल पहुँचाना चाहता हूँ,
प्रान्तीय भेद-भाव को मिटाना चाहता हूँ ,
एक सशक्त भारत बनाना चाहता हूँ !!
लोगों को जगाना चाहता हूँ ,
आसमां के ऊपर अपना घर बनाना चाहता हूँ |
हर दर्द को अपनाना चाहता हूँ ,
खुशियों को लुटाना चाहता हूँ ,
हर घर में ज्ञान की ज्योति जलाना चाहता हूँ ,
अपने माँ के दर्द को भुलाना चाहता हूँ ,
हर गाँव तक अस्पताल पहुँचाना चाहता हूँ,
प्रान्तीय भेद-भाव को मिटाना चाहता हूँ ,
एक सशक्त भारत बनाना चाहता हूँ !!
I wrote this poem during our training days of ICICI Fellowship at Khandala in August 2011 . This was my first serious attempt to write poetry and from here my poetry life starts .......
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