आहिस्ता , आहिस्ता !!
कदम बढ़ा रहा हूँ ,
खुद को तपा रहा हूँ ,
अपने हाथों से,
एक घरोंदा बना रहा हूँ |
आहिस्ता , आहिस्ता !!
एक विद्रोह को दबा रहा हूँ ,
स्वाद को भुला रहा हूँ',
क्रोधी ज्वालामुखी को खा रहा हूँ,
एक ढोंगी समाज को झुंझला रहा हूँ |
आहिस्ता , आहिस्ता !!
सूरज से नजरे मिला रहा हूँ ,
दूरियों को मिटा रहा हूँ ,
भ्रष्टाचार की दलदल में.
चंद कमल खिला रहा हूँ |
आहिस्ता , आहिस्ता !!
रोमांच का धुँआ उड़ा रहा हूँ ,
तन्हाईयों को अपना रहा हूँ ,
छितराई यादों को ,
शब्दों में लगा रहा हूँ |
आहिस्ता , आहिस्ता !!
निरक्षरों से सीख पा रहा हूँ ,
मुश्किलों को भुना रहा हूँ ,
अवसरों को सहला रहा हूँ ,
मन की शांति पा रहा हूँ |
I am about to complete my tenure of Six Months with Watershed Organization Trust in Rural Maharashtra .As par curriculum of ICICI Fellowship , I am standing on the precipice of departure , i was making some calculation ki in six months maine "Kya khoya ? kya paya ?" and i wrote this poem .The inspiration behind this poem is title photo of this poem clicked by Jitu Rahane of Chandnapuri Village (It was 1st time when he was using camera ) , Prakhar Jain (Waise ye banda hamesha dhandha ki hi sochta hain) but kal rat ko during our conversation usne bataya Bhai " Sala abhi main Itna problem aur challenge jhel raha hun ki Life main Maza aa gaya hain" and no doubt ICICI Fellowship team ... I have tried to put my personal learnings of six months of this fellowship and Jagriti Yatra ( Entrepreneur Train Journey of fifteen days across India) in this poem .
5 comments:
बहुत सुन्दर शब्दों से आपने अपनी बात रखने का प्रयास किया है और सफल भी हुए हो
अति उत्तम
बहुत ही उम्दा और बेहतरीन! अंशु की लिखी हुई कविता "अगर नींद से प्यारे हैं सपने" की याद आ गयी| लिखते रहो...
Bahut khub....keep on
काफी अच्छा पहल है वास्तव में मुझे पसंद आया , आप इसी तरह आगे भी लिखते रहिये ,,,,,
आपका अपना
अखिलेश
bahut khub...massallah..
Post a Comment