Tuesday, January 31, 2012

अमावस और पूनम

तन सोया था ,
मन खोया था |
आँखे नम थीं ,
बातें कम थीं |

कुछ खास न करने का मलाल था ,
बंदिशों का चौतरफा दीवाल था ,
खुद पर खुद का चल रहा कुदाल था |
पीछे का व्यथित इतिहास था ,
आज प्रभात में अमावस का अहसास था |

साथ में, निंदिया भी अपना जलवा दिखा रही थी,
धीरे-धीरे अपनी बाँहों में सुला रही थी |
पता नहीं क्या बतलाया !!
क्या दिखलाया !!
कैसा जादू चलाया !!

किन्तु ,जब  जागा ,पूनम का अहसास पाया |
हवा के झोंको से मिलने में मज़ा आया ,
सूरज की किरणों ने जोश का तिल्ली जलाया ,
चिड़ियों के विचरण ने उमंग लाया |
और एक बार  फिर से,
आकाश में उड़ने का जस्बा पाया |